बिलासपुर 25 मई 2025।बिलासपुर शहर में इन दिनों एक विचित्र परंपरा ज़ोरों पर है – पुलिस विभाग में तबादले नहीं होते, बस वसूली का लोकेशन बदलता है। और ताज़ा उदाहरण हैं हमारे दो “वसूली सम्राट” जिनके नाम से शहर के दुकानदार, ठेलेवाले और नशे के ठेके कांपते हैं।
इन दोनों महारथियों का एक बार फिर 'औपचारिक' तबादला हुआ है। सरकारी कागज़ों में इसे प्रशासनिक प्रक्रिया कहा गया, लेकिन जानकारों की माने तो यह तबादला नहीं, 'वसूली फ्रैंचाइज़ी' का विस्तार है।
पुराना भवन – अब नया अड्डा!
पुराने थाने की इमारत को अब “सरकारी गेस्ट हाउस” की आत्मा मिल गई है। वहां अब एफआईआर नहीं, बीयर की बोतलें खुलती हैं। कागज़ पर थाने का संचालन नए भवन से होता है, मगर रात ढलते ही दोनों साहब पुराने भवन में "सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा" के बहाने पहुंच जाते हैं – और फिर शुरू होती है महफिल!
जानकारों की माने तो गाना, बजाना, मुर्गा, शराब और कभी-कभी किसी व्यापारी की ‘हाज़िरी’ – ये सब कार्यक्रम अब सरकारी भवन की शोभा बढ़ाते हैं।
कनेक्शन की करतूत
एक साहब का दावा है कि वह एक मंत्री के “दिल के बहुत करीब” हैं – शायद इसी वजह से उनकी जेब में कानून भी सिकुड़कर बैठ गया है।
दूसरे महोदय का रौब और भी दिलचस्प है – वे खुद को पुलिस महकमे के एक बड़े अधिकारी का “चहेता” बताते हैं। जनता पूछना चाहती है कि क्या विभागीय प्रमोशन अब रिश्ता देखकर मिलता है?
जनता की हालत – “अब किससे शिकायत करें?”
शहर के ईमानदार थानेदार, अगर कहीं बचे हैं, तो इस खबर से या तो मुंह छुपा रहे हैं या ट्रांसफर की चप्पलें तैयार कर रहे हैं। शिकायत करने जाओ तो जवाब मिलता है – “साहब व्यस्त हैं, मीटिंग में हैं, पूछताछ चल रही है... आप कल आना, और केक लाना।”
कप्तान साहब के नाम खुला पत्र> "मान्यवर कप्तान साहब,जब आपके ही विभाग के दो ‘सिंघम’ वर्दी को ‘क्लब ड्रेस’ समझकर नाच रहे हों, तो आपकी नैया किधर जाएगी?
कृपया एक बार पुराने थाने की CCTV फुटेज देख लें... वहां कानून नहीं, ‘कॉकटेल’ दौड़ रहा है।
थानों को विरासत मत बनाइए साहब, उन्हें व्यवस्था का मंदिर ही रहने दीजिए।"
अब देखना ये है कि क्या इस "अड्डा विशेष" पर ताला लगेगा या इसे किसी मंत्री जी के उद्घाटन के बाद “वसूली विरासत भवन” घोषित कर दिया जाएगा?
क्योंकि जब सत्ता संरक्षित हो, और वर्दी शराब में डूबी हो — तब न्याय खुद खुदकुशी कर लेता है।
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