बिलासपुर 23 मई 2025।बिलासपुर अरपा पार की शांत नदी के किनारे बसा एक थाना आजकल सुर्खियों में है—but for all the wrong reasons. यहां दो ऐसे महानुभाव पदस्थ हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि संविधान में ‘ट्रांसफर’ शब्द सिर्फ आम अफसरों के लिए लिखा गया है, इन सज्जनों के लिए नहीं।
ये दोनों महोदय जनसेवा के इतने समर्पित हैं कि रेत माफिया, शराब माफिया और अवैध वसूली वाले इनके ‘कर्मक्षेत्र’ का हिस्सा बन चुके हैं। कहते हैं, ये जहां खड़े हो जाएं वहां अवैध धंधे स्वतः ही चालू हो जाते हैं—बिना परमिशन के। पुलिस महकमे में इनका रुतबा ऐसा है कि ‘थाना प्रभारी’ भी इनसे पूछकर ही कुर्सी पर बैठते हैं—या कम से कम मन ही मन यही सोचते हैं।
ट्रांसफर? वो तो रस्म होती है
इन दोनों महानुभाव का तबादला जितनी बार हुआ, उतनी बार लौट भी आए—जैसे कोई स्टंट शो हो रहा हो: "देखिए, आज फिर लौट आएंगे वो दो सितारे!" विभाग ने कोशिश तो की, लेकिन इनकी ‘बैकडोर एंट्री’ का सिस्टम इतना मजबूत है कि हर आदेश कागज़ों में ही दम तोड़ देता है।
कप्तान साहब भी खामोश
अब आप सोचेंगे कि जिले का कप्तान क्या करता है? तो जवाब है—शायद कुछ नहीं। कप्तान साहब वैसे तो कड़क मिजाज और ईमानदार छवि के अधिकारी माने जाते हैं, लेकिन इन दो महोदय के सामने उनकी सख्ती भी ‘लो बैटरी मोड’ में चली जाती है। अफवाह तो यह भी है कि इन दोनों के पास ऐसा ‘ब्लूटूथ कनेक्शन’ है जो सीधे ऊपर बैठे बड़े साहब से जुड़ा हुआ है—इसलिए नीचे वाला कोई भी बटन दबाए, असर नहीं होता।
स्थायी मूर्ति' बनवाइए
थाना क्षेत्र की जनता अब इन्हें ' पुलिस' नहीं बल्कि 'स्थायी संरक्षक' मान चुकी है।वहीं जानकारों की माने तो ये दो महानुभाव तो थाने में ऐसे जमे हैं जैसे बड़ के पेड़ के नीचे बैठे बाबा—ना हटते हैं, ना हटाए जाते हैं।”
“सरकार को चाहिए कि इन दोनों के नाम पर एक चौक बना दे—‘आरक्षक चौराहा’। वहां एक पट्टिका लगे: 'यहां वही टिकता है जो व्यवस्था से ऊपर होता है।'"
आखिर में यही कहना है कि इन दोनों महानुभाव को देखकर अब नियम-कानून भी शर्माने लगे हैं। अगर ऐसी सेवा भाव वाली आत्माएं हर थाने में हों, तो शायद अपराधियों की जरूरत ही न पड़े????
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