बिलासपुर 27 अगस्त 2022। बिलासपुर एसडीएम तुलाराम भारद्वाज ने बिलासपुर प्रेस क्लब के एक वरिष्ठ पत्रकार को फ़ोन पर धमकी दी है।
बता दें कि 24 अगस्त को पत्रकार ने एसडीएम बिलासपुर और पटवारी आलोक तिवारी पर थाना सरकंडा में दर्ज अपराध क्रमांक 250/2022 आरोपी भोंदूदास मामले में शासकीय ऑनलाइन रिकार्ड से चिल्हाटी के खसरा नम्बर 224/380 में दर्ज भूमिस्वामी का नाम विलोपित करके केवल डेश डेश लाइन लिखने की शिकायत पेश की थी जिसमें एसडीएम बिलासपुर पर पटवारी आलोक तिवारी को संरक्षण देने और कोई कार्यवाही नहीं करने का आरोप भी एसडीएम पर लगाया था।
दिनांक 26 अगस्त की शाम पत्रकार ने एसडीएम बिलासपुर तुलाराम भारद्वाज को बाढ़ राहत प्रबंधन के बारे में दैनिक जानकारी अख़बार में खबर लगाने के लिए फ़ोन लगाया तो एसडीएम तुलाराम भारद्वाज एकदम तिलमिला गए। और ऊँची आवाज़ में ज़ोर ज़ोर से अमर्यादित भाषा में पत्रकार को धमकी देने लगे कि तुम मेरे ख़िलाफ़ शिकायत किए हो तुमको कोर्ट में घसीटूँगा। तुमको देख लूँगा। मीडिया के बारे में भी असंतुलित होकर उल्टा सीधा अनाप शनाप बोलने लगे एसडीएम साहब।
इसकी शिकायत पत्रकार ने कलेक्टर कमिश्नर को रात में ही कर दी है। यहाँ पर यह महत्वपूर्ण बात है कि एक तरफ़ प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल पत्रकारों के हित के लिए ज़्यादा से ज़्यादा काम करने का दावा कर रहें हैं वहीं उनके अधिकारी पत्रकारों को ही धमकी दे रहें है। एसडीएम साहब एक बात भूल जाते हैं कि वो जनता के नौकर हैं। जनता के टैक्स के पैसों से ही सरकार एसडीएम को वेतन देती है। यदि जनता को या किसी को भी कोई गलती दिखेगी तो वह तो शिकायत करेगा ही। यदि एसडीएम साहब पाक साफ़ हैं तो धमकी देने या तिलमिलाने की क्या ज़रूरत है। शांति से खुद जाँच कर लें या जाँच करवा लें और पाक साफ़ हैं तो कोई दिक़्क़त ही नहीं है।
पटवारी आलोक तिवारी पर ऑनलाइन रिकार्ड से भोंदूदास प्रकरण के साक्ष्य को धीरे धीरे मिटाने के आरोप लग रहे हैं और एसडीएम साहब पटवारी पर कार्रवाई के बजाय उल्टे पत्रकार को ही धमका रहे हैं। शहर में इस बात की चर्चा है कि इतने बड़े भोंदूदास घोटालें में एसडीएम पर खुलेआम आरोप लगने के बाद भी आखिर उनका तबादला क्यों नहीं हो रहा है। क्या इस विशेष कृपा के पीछे किसी नेता का दबाव है। क्या राजनीतिक दबाव बिलासपुर की जनता के हित से बड़ा है।
मोपका में सैकड़ों एकड़ सरकारी ज़मीन अधिकारियों और ज़मीन दलालों की मिलीभगत भेंट चढ़ चुकी है। इन सैकड़ों एकड़ ज़मीनों में ग़रीबों के लिए सस्ता आवास बन सकता था, अस्पताल बन सकता था, स्कूल कालेज बन सकता था, सामाजिक भवन बन सकता था।
मोपका में सरकारी ज़मीनों की बंदरबाँट करके कुछ भू माफिया अरबपति बन चुके हैं। जिनके पास आज से तीस साल पहले खाने को दाना नहीं था आज वह करोड़ों करोड़ों के बंगलों में रहते है। यही हाल उन अधिकारियों का है जो भी मोपका लिंगियाडीह आता है वह दो ही साल में मालामाल हो जाता है। एमजी हेक्टर, रेंजरोवर, बीएमडब्लू जैसी गाड़ियों की लाइन लग जाती है।
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