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“दीपावली की सफाई या रोज़ी-रोटी की झाड़ू?निगम की कार्रवाई से सरकंडा के कबाड़ी बने ‘अवैध’ और बाकी शहर ‘पवित्र’...

बिलासपुर। दीपावली से पहले नगर निगम ने शहर को चमकाने का बीड़ा उठाया, पर सफाई का झाड़ू सिर्फ सरकंडा क्षेत्र में ही चला। बाकी शहर मानो पहले से ही “स्वच्छ भारत” बन चुका हो! निगम की इस ‘चमकदार न्याय नीति’ ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या प्रशासन अब क्षेत्रवार “दीपावली टार्गेट क्लीनिंग” प्लान पर काम कर रहा है?


सुबह-सुबह निगम और प्रशासनिक टीम ने सरकंडा के कबाड़ ठिकानों पर धावा बोला। कई झोपड़ीनुमा दुकानों को तोड़ दिया गया, और कबाड़ जब्त कर लिया गया। लेकिन जैसे-जैसे धूल शांत हुई, सवालों का गुबार उठने लगा, जब चकरभाठा, सकरी, सिरगिट्टी, सिटी कोतवाली, बिल्हा और तखतपुर मार्ग पर भी कबाड़ के “महाकुंभ” सजे हैं, तो निगम का बुलडोज़र सिर्फ सरकंडा की गलियों में ही क्यों घूमता दिखा?

स्थानीय लोगों का आरोप है कि कार्रवाई के नाम पर निगम ने न केवल पारदर्शिता का पालन नहीं किया, बल्कि कई जगह से जब्त कबाड़ को शहर के ही दूसरे कबाड़ियों को “प्रशासनिक छूट” के तहत बेच भी दिया गया। ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है, सफाई अभियान चल रहा था या “सेलेक्टिव कबाड़ कारोबार” का नया ठेका?

 मजदूरों की दीपावली हुई फीकी

कबाड़ दुकानों में काम करने वाले मजदूर वर्ग के लिए दीपावली अब अंधेरी हो गई है। जिनके हाथों से रोज़ कमाई की चिंगारी जलती थी, उनके लिए अब “दीए भी उधार के” बन गए हैं।वही कुछ लोगों ने सवाल उठाया कि अगर यह कार्रवाई जरूरी थी, तो क्या दीपावली के ठीक पहले करना जरूरी था? क्या निगम प्रशासन को गरीब मजदूरों की थाली से त्योहार की मिठास छीनने में कोई संकोच नहीं हुआ?
“अगर सफाई करनी थी, तो पूरे शहर की करो, सिर्फ सरकंडा की क्यों?“हम तो सोच रहे थे निगम दीपावली में रोशनी बाँटेगा, पर उसने रोज़ी ही बुझा दी।” “निगम की नजर गरीबों के ठेलों और झोपड़ियों पर ही क्यों टिकती है, बड़े कारोबारियों की लोहे की दीवारों में शायद उन्हें कबाड़ नहीं दिखता।”जानकारों का कहना है कि सरकंडा में कार्रवाई का कारण चाहे जो भी बताया जाए, मगर असली सवाल अब भी वही है क्या बाकी शहरों के कबाड़ी ‘स्वच्छता ब्रांड एम्बेसडर’ हैं, जिन पर निगम की नजरें झुक जाती हैं?या फिर यह अभियान ‘जहाँ आसान हो, वहीं शौर्य दिखाओ’ वाली नीति का ताजा उदाहरण है?
सरकंडा में हुई यह कार्रवाई निश्चित ही एक प्रशासनिक पहल कही जा सकती है, लेकिन इसका समय, तरीका और क्षेत्रीय चयन सबने मिलकर इसे सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है। अब देखना यह होगा कि निगम अपने इस ‘एकतरफा न्याय’ को शहर के बाकी हिस्सों तक बढ़ाता है या दीपावली की तरह यह भी कुछ इलाकों तक ही सीमित रह जाती है।

वहीं निगम के कर्मचारियों ने सरकंडा के जप्त कबाड़ को शहर के कोतवाली क्षेत्र के एक कबाड़ दुकान में खुले रूप से बेचते भी नजर आए जिसके बाद अब निगम की इस कार्रवाई पर सवाल उठाना तो लाजिमी है कि आखिर आप ही शहर से कबाड़ साफ करने की कार्रवाई कर रहे है और आप के कर्मचारी उसी जप्त कबाड़ को दूसरे कबाड़ी को बेचते नजर आते है क्या बात है साहब कबाड़ कारोबारी करे तो सफाई और आपके लोग करे तो?????

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