भोपाल इंदौर 30 अक्तूबर 2025। मध्यप्रदेश की चर्चित सोम डिस्टिलरी एक बार फिर सवालों के घेरे में है। देपालपुर जिला इंदौर के अपर सत्र न्यायालय ने 23 दिसंबर 2023 को अपने निर्णय में सोम डिस्टिलरी के निदेशकों और विभागीय अधिकारी प्रीति गायकवाड़ को धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश के गंभीर आरोपों में दोषी पाया था। इसके बावजूद, लगभग दो वर्ष बीत जाने के बाद भी डिस्टिलरी का लाइसेंस बहाल है, जिससे प्रशासनिक तंत्र की पारदर्शिता और कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
अपर सत्र न्यायालय, देपालपुर ने प्रकरण क्रमांक 21/2021 (आपरेतिक क्रमांक 565/11) में अपना फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों प्रीति गायकवाड़ (आबकारी उप निरीक्षक) तथा सोम डिस्टिलरी के निदेशकों — को भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 468, 471 और 120B के तहत दोषी पाया।
न्यायालय ने उन्हें तीन वर्ष के कारावास और ₹1000 के अर्थदंड से दंडित किया।इस निर्णय के बाद मध्यप्रदेश शासन ने आदेश क्रमांक 1/1/25/0001/2025 दिनांक 25 सितंबर 2025 के तहत
श्रीमती प्रीति गायकवाड़ को सेवा से बर्खास्त कर दिया।हालांकि उच्च न्यायालय, इंदौर ने 24 जनवरी 2024 को उनकी सजा के पालन (Execution of Sentence) को सस्पेंड कर दिया था,परंतु 10 सितंबर 2025 को अदालत ने उनकी Conviction Suspension (दोष सिद्धि निलंबन) की याचिका खारिज कर दी।आश्चर्य की बात यह है कि उसी फैसले में डिस्टिलरी के निदेशकगण भी समान धाराओं में दोषी ठहराए गए,फिर भी अब तक उनका लाइसेंस निलंबित या निरस्त नहीं किया गया।जबकि मध्यप्रदेश आबकारी अधिनियम, 1915 की धारा 31(1)(d) के अनुसार,यदि किसी लाइसेंसधारी को किसी आपराधिक प्रकरण में दोषी ठहराया जाता है, तो उसका लाइसेंस स्वतः निरस्त किया जाना चाहिए।
कानूनी स्थिति स्पष्ट है,दोष सिद्धि (Conviction) बरकरार रहने की स्थिति में सोम डिस्टिलरी का लाइसेंस वैधानिक रूप से निरस्त होना चाहिए था।फिर भी लगभग दो वर्ष बीत चुके हैं,और आबकारी विभाग तथा राज्य शासन इस पर मौन हैं।यह चुप्पी इस बात का संकेत देती है कि जहां एक सरकारी अधिकारी पर सख्त कार्रवाई की गई,वहीं प्रभावशाली उद्योग प्रबंधन पर ढिलाई बरती जा रही है।यह स्थिति समान न्याय के सिद्धांत (Equality Before Law) पर सीधा प्रश्नचिह्न लगाती है।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि किसी औद्योगिक संस्था के निदेशक धोखाधड़ी और जालसाजी जैसे गंभीर अपराधों में दोषी ठहराए गए हों,तो उस संस्था का लाइसेंस बरकरार रखना विधिक प्रक्रिया और प्रशासनिक नैतिकता दोनों के विपरीत है।
यह प्रकरण अब सिस्टम की निष्पक्षता और जवाबदेही की कसौटी बन चुका है।यदि सरकार ने दोष सिद्ध अधिकारी को बर्खास्त किया,तो उसी आधार पर सोम डिस्टिलरी का लाइसेंस निरस्त क्यों नहीं हुआ?यह सवाल अब जनचर्चा का विषय बन गया है।
सोम डिस्टिलरी प्रकरण अब केवल एक कानूनी विवाद नहीं रहा,बल्कि यह राज्य के प्रशासनिक तंत्र की पारदर्शिता और निष्पक्षता की परीक्षा बन गया है।
अगर दोष सिद्ध उद्योग पर कार्रवाई टलती रही,तो यह संदेश जाएगा कि कानून आम लोगों के लिए कठोर और प्रभावशाली वर्ग के लिए लचीला है।
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